|| मुक्ति का मार्ग ||
भगवान ने गीता [ श्लोक १६ / १ - ३ ] में देवी संपदा का वर्णनं किया है | ये सब भक्तों के २६ गुण बताए गए हैं | यही बात [ श्लोक १८ / ४२ -४४ ] चारों वर्णों के स्वभाविक गुणों के रूप में भी कही गई है | देवी संपदा मुक्ति के लिए और आसुरी संपदा बांधने के लिए मानी गयी है | आसुरी सम्पति [ श्लोक १६ / ७ से २१ ] का आश्रय लेने वालों की अधो - गति होती है | वे नर्क -गामी होते हैं | काम , क्रोध ,और लोभ ये तीन प्रकार के नर्क के द्वार कहे गए हैं | इसके विपरीत जो इनसे मुक्त होकर कल्याण का आचरण [ भक्ति ,सत्संग , स्वाध्याय ] करता है [ श्लोक १६ / २२ ] वह परम गति को प्राप्त हो जाता है | भोग की इच्छा को लेकर ' काम " तथा संग्रह की इच्छा को लेकर ' लोभ " आता है और इन दोनों में बाधा पड़ने पर "क्रोध " आता है | ये तीनों ही आसुरी सम्पति के मूल हैं | सब पाप इन तीनों से ही होते हैं | इनसे रहित होने का मतलब है -इनके त्याग का उद्देश्य रखना ,इनके वश में नहीं होना | मन - माने आचरण करने वाले को न सिद्धि [ अंत: करण की शुद्धि ] और न ही सुख [ मन की शांति ] मिलता है | तथा न ही वह परम गति को प्राप्त होता है | अत: कर्तव्य -अकर्तव्य की अवस्था में शास्त्र ही प्रमाण माना जाता है | इतिहास के आधार पर सत्य का निर्णय नहीं हो सकता | इतिहास से विधि प्रबल है , और विधि से भी निषेध प्रबल है |
कोई भी पुरुशार्थ [ धर्म ,अर्थ ,काम , मोक्ष ] तभी सिद्ध हो सकता है ,जब इस दोष - समुदाय [ आसुरी संपदा ] का त्याग किया जाय | त्रिदोष [ वात , पित , कफ ] शरीर से निकल जाय , तीनों दुर्गुन्नों [ चोरी , चुगली , छीनली ] से नगर मुक्त हो जाय ,अथवा अंत: करण के [ देहिक , देविक , भौतिक ] संताप शांत हो जाय तो जैसा सुख होता है , वैसा ही सुख संसार में तीनों [ काम , क्रोध , लोभ ] दोषों का त्याग करने से प्राप्त होता है | तथा मोक्ष मार्ग में सज्जनों की संगति प्राप्त होती है | फिर सत्संग , व स्वाध्याय से जन्म - मृत्यु - रुपी जंगल पार हो सकता है | तब गुरु - कृपा से उस नगरी का लाभ होती है जो सम्पूर्ण आत्मानंद से बसी है | वहाँ आत्मा - रुपी माता की भेंट होती है | उसे ह्रदय से लगाते ही यह सांसारिक कोलाहल बंद हो जाता है | फिर गुरु - आज्ञा [ श्लोक १३ / २५ ] से श्रवण - भक्ति द्वारा मुक्ति संभव है | जब तक ब्रह्म से एक - रूपता न हो जाय , तब तक श्रुति [ वेद - निष्ठां ] नहीं छोडनी चाहिए | और जो सत्य - कर्तव्य ठहराया जाय , उसका शरीर से अच्छी तरह , प्रेम से आचरण करना चाहिए | यही मुक्ति का मार्ग है |
|| इत्ती ||
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