गीता एक रहस्य युक्त एंवं गोपनीय शास्त्र है { गीता श्लोक १५/२० } | गीता गंगाजी से भी पवित्र मानी गई है क्योंकि गंगाजी भगवान के श्री चरणों से प्रकट हुई है जबकि भगवन के श्री मुख से प्रकट हुई है | गंगाजी केवल इसमें स्नान करने वालों को ही पवित्र करती है परन्तु गीता तो घर बैठे ही पवित्र कर देती है | इतना ही नहीं गीता केवल सुनने वालों का भी कल्याण कर देती है |
भगवान ने गीता {गीता श्लोक ४/३ } में समता युक्त निष्काम करम योग {२/४७-४८ } को गुह्य ज्ञान बताया है | तथा ज्ञान योग के द्वारा सगुन निराकार परात्मा को जानना {गीता श्लोक १८/६२ } को गुह्यतर ज्ञान बताया है | परन्तु ज्ञान विज्ञानं सहित अर्थात समुद्र रूप परात्मा के गुण व प्रभाव को जानना {गीता श्लोक ९/२ } जो केवल भक्ति योग से ही संभव है {गीता श्लोक ११/५४ : ८/२२ } को गुह्यतम ज्ञान बताया है | इसीको राग विद्या भी कहा है | परन्तु सगुन साकार भगवन की शरणागति {गीता श्लोक ९/३४ : १८/६५ } को सर्व गुह्यतम ज्ञान बताया है | पूरी गीता मैं भगवन ने इसे दो बार कहा है -
मनमाना भव् मद्भक्तो मद्याजी माम नमस्कारू |
मामे वैश्यासी युक्त वैवं मात्मनाम मत्परयानाह ||
अर्थात : मुझमे मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर | इस प्रकार आत्मा को मुझमे नियुक्त करके मेरे परायण हो कर तू मुझको ही प्राप्त होगा | यहो आचरण योग्य गीता सार है |
जीसमे दो नहि एक है जिसका मतलब है मै अभी इस वक्त जिंदा हुं तो भगवान और मै अलग कैसे हो शक्ते है, क्योकि बगैर भगवानके सांसहि कैसे चलेगी सो मै हुं वह वोहि है।
जवाब देंहटाएं