मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

जागृत - कुण्डलिनी के लक्षण


‎|| जागृत - कुण्डलिनी के लक्षण ||
गीता [ शलोक ६ /१४ ] में भगवान वज्रासन से कुण्डलिनी जागरण की विधि समझा रहे हैं | आसन की उष्णता से यह शक्ति जागृत होती है | जैसे कोई नागिन का सम्पोला कुंकुम में नहाया हो और गिंडी मारकर सो रहा हो | वैसी वह छोटी सी कुण्डलिनी सादधे तीन गिंडी मारकर नीचे मुंह किये हुई सर्पिनी सी सोई रहती है | वह वज्रासन के दबाव से जग जाती है |
जैसे चारों और अग्नि के बीज में से अंकुर फूटे हों | वैसी वह शक्ति गिंडी को छोड़कर घूमती हुई नाभि -स्थान पर दिखाई देती है | वह हृदय -कमल के नीचे की वायु को चपेट लेती है | वह पृथ्वी व जल तत्व को खा डालती है | तब पूर्ण तृप्त होती है व सुषुम्ना नाडी के पास शांत हो रहती है | इस प्रकार इडा व पिंगला नादियों के मिल जाने से ,तीनों ग्रंथियां खुल जाती है एवं चक्रों की छहों कलियाँ खिल जाती है | उस अवस्था में उपर की और से चंद्रामृत का सरोवर धीरे से कनिया कर कुण्डलिनी के मुंह में गिरता है | उससे शरीर में तेज प्रकट होता है | जैसे मानो आत्म -ज्योति का लिंग ही साफ़ कर रखा हो | मानो वह मूर्ति -मान शांति का ही स्वरूप हो तथा संतोष -रूपी वृक्ष का पौधा रोपा गया हो | या मूर्ति मान अग्नि ही स्वयम आसन पर बैट्ठी हो | कुण्डलिनी जब चंद्रामृत पीती है तो साधक का शरीर ऐसा हो जाता है | हथेलियाँ व तलुवे रक्त -कमल के समान हो जाते हैं |इस अवस्था में साधक को अनेक सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं | जब कुण्डलिनी मन व प्राण के साथ ह्रदय [ ब्रह्म - रंध्र ] में प्रवेश करती है , जहां चेतन्य निवास करता है , उस ह्रदय - रुपी भवन में यह कुण्डलिनी अपना तेज [ प्रकाश ] छोड़ देती है तथा प्राण रूप में स्थापित हो जाती है | मानो बिजली चमक कर आकाश में विलीन हो गई हो अथवा प्रकाश -रुपी झरना हृदय रुपी जमीन में समा गया हो | वैसे ही उस शक्ति का रूप शक्ति में ही लुप्त हो जाता है | इस प्रकार पिंड से पिंड का ग्रास का जो अभिप्राय है , यहाँ उसीका वर्णनं किया गया है | अर्थार्त ह्रदय में पृथ्वी तत्त्व को जल तत्त्व गला देता है , जल को तेज [ अग्नि ] सुखा देता है ,और तेज को वायु तत्त्व बुझा देता है | केवल वायु तत्त्व रह जाता है ,जो कुछ काल बाद आकाश में जा मिलता है तथा आत्मा परमात्मा में मिल जाता है | इसे ही ब्रह्म - प्राप्ति कहा गया है | वैराग्य एवं स्व -धर्म आचरण से ही ब्रह्म प्राप्ति की योग्यता प्राप्त हो सकती है |

3 टिप्‍पणियां:

  1. भगवद्गीता में कहीं भी वज्रासन अथवा कुण्डलनी जागरण की बात नहीं कही गयी है.कृपया शास्त्र मर्यादा का ध्यान रक्खें.भ्रम न फेलायें.

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  2. kripya sandarbh ke liye diye gaye 06 adhyaya ke 13-14 shlok ko dekhe aur usme nihit arth ko samjhe...
    shrimad bhagwat geeta ki koi bhi prati dekh sakte hai...

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  3. Shlok 13 main Bhagvan Dhyan ke abhyaas ke liye seedhe sthir baithkar naasika ke agr main apne Dhyan ko sthir Karen Ko Kah Rahe hain. Shlok14 main man ko aatma main Lagaane kah rahe hain.

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