सोमवार, 12 दिसंबर 2011

साधना में सफलता के लक्षण


‎|| साधना में सफलता के लक्षण ||
ऐसी मान्यता है की शरीर में सिथत कुन्द्लीनी शक्ति ही भगवती का स्वरूप है | यह शक्ति बिजली की तरह है , जिससे मन , बुद्धि, चित ,अहंकार के बल्ब दिव्य - ज्योति से जगमगाने 
लगते हैं | इसका सीधा प्रभाव अंतरात्मा पर होता है जिससे उसकी सूक्ष्म चेतना जागृत हो जाती है और दिव्य संदेशों को, प्रकृति के गुप्त रहस्यों को समझने की योग्यता आ जाती है | 
साधना की पूर्ण अवस्था में अंतरात्मा निर्मल हो जाती है और उसमें देवी तत्वों का , ईश्वरीय संकेतों का अनुभव स्पष्ट रूप से होता है , जैसे दीपक जलाने से क्षण भर में अन्धकार में 
छिपी हुई सारी चीजें प्रकट हो जाती है |
सिद्ध योगी को स्वप्न में , या जागृत अवस्था में भगवती के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है | किसी को प्रकाशमय ज्योति के रूप में , किसी को अलोकिक देवी के रूप में , किसी को स्नेह -मई नारी [ संबंधी ] के रूप में दर्शन होते हैं | कोई उनके सन्देश सीधा वार्तालाप जैसे प्राप्त करते हैं | किसी किसी को बात घुमा - फिरा कर सुनाई या समझाई जाती है | किसी को स्पष्ट आदेश होता है | यह साधकों की विशेष मनोभूमि पर निर्भर है | हर एक को इस प्रकार के अनुभव नहीं हो सकते |
निरर्थक स्वप्न अत्यंत अपूर्ण होते हैं , उनमें केवल छोटी सी झांकी होती है , फिर तुरंत उनका तारतम्य बिगड जाता है | सार्थक स्वप्न कुछ विशेषता लिए हूवे होते हैं | उन्हें देखकर 
मन में भय , शोक ,चिंता ,क्रोध ,हर्ष - विशाद , लोभ , मोह आदि के भाव उत्पन्न होते हैं | जागने पर भी उसकी छाप मन पर बनी रहती है | तथा चित में जिज्ञासा बनी रहती है की 
इस स्वप्न का अर्थ क्या है ? सात्विकता के बढाने पर यज्ञ ,दान ,जप , उपासना ,तीर्थ ,मंदिर ,उपदेश ,माता -पिता ,साधू ,महात्मा ,देवी -देवताओं के दर्शन ,दिव्य - प्रकाश आदि शुभ 
स्वप्नों से अपने -आप अंदर आये हुए शुभ तत्वों को देखता है | प्रात: काल सूर्योदय से एक ,दो घंटे पूर्व देखे हुए स्वप्न में सचाई का बहुत अंश होता है | इसमें सुक्ष्म - जगत में विचरण करते हुए भविष्य का , भावी विधानों का बहुत कुछ आभास मिलने लगता है |

1 टिप्पणी:

  1. धर्म अगर मनके आधार पर हि तारण निकाला जाता रहा तो बबालतो होतेही रहना है। घर्म का तत्व सिर्फ ईतना के बुद्धि को दाता राम याने अपने प्राण जो शरीरके ऊपरी भागमें काम करते है जिसका हर समय हर पल ध्यान और प्राणायाम सतत करते रहना जो बाकिके चार वायुको सुध्ध करदेता है आपने एक कहावततो सुनी होगीहि पारश लोखंदकोभी सोना बना देता है वह पारश प्राणहै और बाकीके चारवायु उदान अपान समान और व्यान लोखंदको सोना बना देता है। एक इन्सान इन प्राणों को पकडकर ध्यानसे आत्मा की प्राप्ति करता है और आत्मज्ञानी बनता है भगवान ऐसे प्राणवान आत्मज्ञानी पुरुष केहि बारेमे कहते है ज्ञानी मेरा आत्मा है न कहि आता है न कही जाता है बस मुजमें आत्मविश्वास रखता है और अच्छे कार्योमेही अपना योगदान देता है।

    जवाब देंहटाएं