शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

अंत - मती - सो गति


‎|| अंत - मती - सो गति ||
देह छोड़कर जाने वाले जीवात्मा की दो गतियाँ बताई गई है | गीता [श्लोक ८ / २४ -२५ ] में प्रकाश मार्ग से ब्रह्म - प्राप्ति ,सायुज्य -मुक्ति बताई गई है तथा धूम्र -मार्ग से पुनर्जन्म प्राप्त होता है | परन्तु देहांत के समय ,अपनी इच्छा -अनुसार बात नहीं हो सकती ,देव -गति से जो जिसे प्राप्त हो जाये ,सो सही |


गीता [ श्लोक ८ /२७ ] में भगवान ने योग -युक्त ,अर्थार्त समता में सिथत होने की बात कही है | ऐसे योगी जीते जी ही ' ब्रह्म - भाव "में सिथित हो जाते हैं | तो उन्हें उपरोक्त दोनों मार्गों की चिंता नहीं रहती | जैसे पानी कभी नहीं सोचता की उसमें लहरें है या नहीं ? वह तो सर्वदा पानी ही है | तरंगों के पैदा होने से ,न तो उसका जन्म होता है , और न ही उनके लोप होने से उसका अंत होता है | जैसे अँधेरे में [ अज्ञान के कारण ] रस्सी में सर्प दिखाई देता है ,वह रसी के ही कारण है | इसी प्रकार ग्यानी यह समझता है की शरीर रहे या न रहे हम तो केवल ब्रह्म ही हैं | इसे ही योग युक्त होना कहा गया है | जैसे बादल आकाश में ही उत्पन होकर आकाश में ही समा जाता है ,ऐसे ही वह योगी ,जहां से संसार उत्पन्न होता है ,तथा जिसमें लीन हो जाता है ,वह वस्तु वह योगी देह रहते ही स्वयम बन जाता है |


तुलसीदासजी ने इस सिथति को " सोई जाने जेहि देहु जनाई , जानत तुम्हें तुम्ही होई जाही " कहा है | इसीलिये भगवान ने [ ६ / ४६ -४७ ] में अर्जुन को अंत: करण से योगी होने को कहा है | योगियों में भी ज्ञानी - भक्त को सर्व - श्रेष्ट योगी कहा है | देवों का देव कहा है ,अपनी आत्मा कहा है | शरीर में चेतना , अग्नि तत्व के रहने तक ही रहती है | अत: शरीर में अग्नि -तत्व हो , ज्योति का प्रकाश हृदय में हो , दिन का समय ,शुक्ल पक्ष ,उतरायण का कोई महीना हो ,ऐसे समय में मृत्यु होने पर , सायुज्य - मुक्ति ,अथवा ब्रह्म -प्राप्ति होती है | इसके विपरीत धूम्र - मार्ग में देह छोड़ने वाला सकाम योगी , चंद्र - लोक तक जाता है परन्तु वहाँ से लौट कर पुनर्जन्म लेता है |

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