शनिवार, 3 दिसंबर 2011

शक्ति के रूप में ब्रह्म की उपासना


‎|| शक्ति के रूप में ब्रह्म की उपासना ||
ब्रह्मवैवर्त पुराण में स्वयम भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - ' तुम्हीं विश्वजननी मूलप्रकृति ईश्वरी हो , तुम्हीं सृष्टि की उत्पत्ति के समय आध्या शक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मक माया बन जाती हो | यद्यपि वस्तुत: तुम स्वयम निर्गुण हो तथापि प्रयोजनवश सगुन हो जाती हो | तुम परब्रह्म - स्वरूप , सत्य , नित्य , एवं सनातनी हो | परम तेजस्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने के हेतु शरीर धारण करती हो | तुम सर्वस्वरूपा , सर्वेश्वरी सर्वाधार एवं परात्पर हो | तुम सर्व बीज -स्वरूप , सर्वपूज्या एवं आश्रय रहित हो | तुम सर्वज्ञ , सर्वप्रकार से मंगल करनेवाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो |' उस ब्रह्मरूप चेतन शक्ति के दो स्वरूप हैं - एक निर्गुण और दूसरा सगुन | सगुन के भी दो भेद हैं - एक निराकार और दूसरा साकार | इसीसे सारे संसार की उत्पत्ति होती है | उपनिषदों में इसीको पराशक्ति के नाम से कहा गया है | 
उस पराशक्ति से ब्रह्मा , विष्णु और रूद्र उत्पन्न हुए | उसीसे सब पदार्थ और अंडज , स्वेदज , उद्भिज , जरायुज जो कुछ भी स्थावर , जंगम , मनुष्य आदि प्राणी मात्र उत्पन्न हुए | ऋग्वेद में भगवती कहती हैं - ' मैं रूद्र , वसु , आदित्य , और विश्व्देवों के रूप में विचरती हूँ | वैसे ही मित्र , वरुण , इंद्र , अग्नि और अस्विनिकुमारों के रूपको धारण करती हूँ |' वह पराशक्ति सर्वसामर्थ्य से युक्त है ;क्योंकि यह प्रत्यक्ष देखा जाता है | इसलिए महाशक्ति के नाम से भी ब्रह्म की उपासना की जा सकती है | बंगाल में श्रीरामकृष्ण परमहंस ने भगवती , शक्ति के रूप में ब्रह्म की उपासना की थी | वे परमेश्वर को माँ , तारा , काली आदि नामों से पुकारा करते थे | ब्रह्म की महाशक्ति के रूप में श्रधा , प्रेम और निष्काम भाव से उपासना करने से परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है | बहुत से सज्जन इसको भगवान की आह्लादिनी शक्ति मानते हैं | महेश्वरी , जगदीश्वरी , परमेश्वरी भी इसीको कहते हैं | लक्ष्मी , सरस्वती , दुर्गा , राधा , सीता आदि सभी इस शक्ति के ही रूप हैं | परमेश्वर शक्तिमान है और भगवती परमेश्वरी उसकी शक्ति है | शक्तिमान से शक्ति अलग होने पर भी अलग नहीं समझी जाती | जैसे अग्नि की दाहिका शक्ति अग्नि से भिन्न नहीं है | यह सारा संसार शक्ति और शक्तिमान से परिपूर्ण है और उसीसे इसकी उत्पत्ति , सिथति और प्रलय होते हैं | इस प्रकार समझकर वे लोग शक्तिमान और शक्ति युगल की उपासना करते हैं | प्रेमस्वरूपा भगवती ही भगवान को सुगमता से मिला सकती है | इस प्रकार समझकर कोई - कोई केवल भगवती की ही उपासना करते हैं | श्रुति ,स्मृति , पुराण , इतिहास आदि शास्त्रों में इस गुणमयी विद्या - अविद्या रूपा मायाशक्ति को प्रकृति , मूल प्रकृति , महामाया , योगमाया आदि अनेक नामों से कहा है | २३ तत्वों के विस्तार वाला यह सारा संसार तो उसका व्यक्त - स्वरूप है | जिससे सारा संसार उत्पन्न होता है और जिसमें यह लीन हो जाता है वह उसका अव्यक्त स्वरूप है | 
भगवान [ श्लोक ८ / १८ ] में कहते हैं - ' सम्पूर्ण दृश्यमात्र भूतगन ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में अव्यक्त से अर्थात ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्री के प्रवेशकाल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लय होते हैं | ' 
वास्तव में प्रकृति और पुरुष दोनों के संयोग से चराचर जगत की उत्पत्ति होती है | भगवान [ श्लोक १४ / ३ ] कहते हैं ' हे अर्जुन ! मेरी महदब्रह्म रूप प्रकृति अर्थात त्रिगुणमयी माया सम्पूर्ण भूतों की योनी है अर्थात गर्भाधान का स्थान है और मैं उस चेतन रूप बीज को स्थापन करता हूँ | उस जड - चेतन संयोग से सब भूतों की उत्पत्ति होती है |' 

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