बुधवार, 30 नवंबर 2011

जीव क्या साथ लाता - लेजाता है ?


‎|| जीव क्या साथ लाता - लेजाता है ? ||
तीन शरीर माने गए हैं | [ १ ] स्थूल - जिस समय यह जीव जाग्रत अवस्था में रहता है , उस समय इसकी सिथ्ती स्थूल शरीर में रहती है | तब इसका संबंध पांच प्राणों सहित २४ तत्वों से रहता है | पांच महाभूत - आकाश , वायु , अग्नि , जल और पृथ्वी | पांच ज्ञानेन्द्रियाँ - कान , त्वचा , आँख , जीभ , और नाक | पांच कर्मेन्द्रियाँ - वाणी , हाथ , पैर , उपस्थ और गुदा | पांच विषय - शब्द , स्पर्श , रूप ,रस , और गंध | मन , बुद्धि , अहंकार और मूल प्रकृति [ श्लोक १३ / ५ ] | यही चौबीस तत्व हैं | प्राणवायु के अलग मानने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह वायु तत्व में शामिल है | भेद बतलाने के लिए ही प्राण ,अपान , समान , व्यान , उदान नामक वायु के पांच रूप माने गए हैं | [ २ ] सूक्ष्म - स्वप्नावस्था में जीव की सिथती सूक्ष्म शरीर में रहती है | इसमें १७ तत्व माने गए हैं | पांच प्राण , पांच ज्ञानेन्द्रियाँ , पांच विषय तथा मन और बुद्धि | इस सूक्ष्म शरीर के अंतर्गत तीन कोष माने गए हैं - प्राणमय , मनोमय , और विज्ञानमय | पांच कोशों में स्थूल शरीर ' अन्नमय ' कोष है | प्राणमय कोष में पांच प्राण हैं | उसके अंदर मनोमय कोष है , इसमें मन और इन्द्रियाँ हैं | उसके अंदर विज्ञानमय [ बुद्धि रुपी ] कोष है , इसमें बुद्धि और पांच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं , यही सत्रह तत्व हैं | स्वप्न में इस सूक्ष्म रूप का अभिमानी जीव ही पूर्वकाल में देखे - सुने पदार्थों को अपने अंदर सूक्ष्म रूप से देखता है | [ ३ ] कारण - जब इसकी सिथति कारण शरीर में होती है , तब अव्याकृत माया प्रकृति रुपी एक तत्व से इसका संबंध रहता है | इसीसे उस जीव को किसी बात का ज्ञान नहीं रहता | इसी गाढ निद्रावस्था को सुषुप्ति कहते हैं | माया सहित ब्रह्म में लय होने के कारण उस समय जीव का संबंध सुख से होता है | इसलिए इसीको ' आनंदमय ' कोष कहते हैं | इसीसे इस अवस्था से जागने पर यह कहता है की ' मैं बहुत सुख से सोया ' , उसे और किसी बात का ज्ञान नहीं रहता , यही अज्ञान है , इस अज्ञान का नाम ही माया - प्रकृति है | ' सुख से सोया ' इससे सिद्ध होता है की उसे आनंद का अनुभव था | परन्तु अज्ञान में रहने के कारण , सुख रूप ब्रह्म में सिथत होने पर भी जीव को ज्यों -का त्यों लौट आना पड़ता है | 
स्थूल शरीर से निकलकर जब यह जीव बाहर जाता है , तब प्राणमय कोश वाला सत्रह तत्वों का सूक्ष्म शरीर इसमें से निकलकर अन्य शरीर में जाता है | भगवान [ श्लोक १५ / ७ -८ ] ने कहा है - इस देह में यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है और वही इन त्रिगुणमई माया में सिथत पाँचों इन्द्रियों को आकर्षण करता है | जैसे गंध के स्थान से वायु गंध को ग्रहण करके ले जाता है , वैसे ही देहादी का स्वामी जीवात्मा भी जिस पहले शरीर को त्यागता है , उससे मन सहित इन इन्द्रियों को ग्रहण करके , फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है , उसमें जाता है | प्राणवायु ही उसका शरीर है , उसके साथ प्रधानता से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और छठा मन [ अंत:कर्ण ] जाता है , इसीका विस्तार सत्रह तत्व है | यही सत्तरह तत्वों का शरीर शुभ- असुभ कर्मों के संस्कार के सहित जीव के साथ जाता है | 
प्रलय -काल में जीवों के सूक्ष्म शरीर ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में , संस्कारों सहित मिल जाते हैं और सृष्टि के आदि में उसीके द्वारा पुन: इनकी रचना हो जाती है [ श्लोक ८ / १८ ] | महाप्रलय में ब्रह्मा सहित सम्पूर्ण सूक्ष्म शरीर ब्रह्मा के शांत होने पर , शांत हो जाते हैं , उस समय एक मूल प्रकृति रहती है , जिसको अव्याकृत माया कहते हैं | उसी महाकारन में जीवों के समस्त कारण -शरीर संस्कारों सहित लीन हो जाते हैं | तब महासर्ग [ सृष्टि के आदि में ] में स्वयम भगवान पुन: सृष्टि की रचना करते हैं [ श्लोक १४ / ३ - ४ ] | अर्थात परमात्मारूप अधिष्ठाता के अधीन प्रकृति ही चराचर सहित इस जगत को रचती है , इसी तरह यह संसार आवागमन रूप चक्र में घूमता रहता है [ श्लोक ९ / १० ] | महाप्रलय में पुरुष और उसकी शक्तिरूपा प्रकृति , यह दो ही व्स्तुवें रह जाती हैं , उस समय जीवों का प्रकृति सहित पुरुष में लय हूवा रहता है और सृष्टि के आदि में उनका पुन्रुथान होता है |

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