गुरुवार, 12 जनवरी 2012

महात्मा की पहचान


‎|| महात्मा की पहचान ||
जिन साधकों को भगवद - प्राप्ति हो गयी है , उनको सिद्ध पुरुष या महात्मा कहते हैं | गीता [ श्लोक ९ /१३ ] में भगवान ने उनकी पहचान के कुछ लक्षण बताए हैं | भगवान कहते हैं की मैं जिनके निर्मल मन में सन्यासी होकर रहता हूँ , जिनकी वैराग्य सेवा करता है , जिनकी श्रधा के सद्भाव में धर्म राज्य करता है , जिनका मन विवेक का जीवन है , जो ज्ञान रुपी गंगा में नहाये हैं | पूर्णता -रुपी भोजन कर तृप्त हुए हैं , जो शांति -रुपी वृक्ष में उत्पन्न हुए नए पत्ते हैं | जो ब्रह्म -रुपी फल के निकले हुए अंकुर हैं ,जो धैर्य -मंडप के खम्भे हैं ,जो आनंद -रुपी समुद्र में डुबाकर भरे हुए घड़े हैं | जिनको भक्ति यहाँ तक प्राप्त हो गई है की वे मुक्ति को भी " भाग यहाँ से " ऐसा कहते हैं | जिन्होंने इन्द्रियों में शांति के गहने पहने हैं | ऐसे जो महात्मा देवी प्रकृति के भाग्य -रूप हैं , जो मेरा सम्पूर्ण स्वरूप जानते हैं , वे प्रेम से मेरा भजन करते हैं | वे प्रेम से नाचते हुऐ [ श्लोक ९ /१४ ] हरी - कीर्तन करते हैं | मेरे नाम के घोष से संसार के दू:खों का नाश कर डालते हैं | वे योग के बिना ही आँखों को कैवलय दिखाते हैं | वे राजा -रंक में , छोटे -बड़े में भेद नहीं करते | इस प्रकार वे नाम -भजन की महिमा से विश्व को प्रकाशित कर देते हैं | सूर्य में अस्त होना दोष है , चंद्रमां महीने में एक - आध बार ही सम्पूर्ण होता है , परन्तु मेरे भक्त सदा पूर्ण ही रहते हैं | जो मेरे नाम का घोष [ कीर्तन ]करते रहते हैं , उनके पास खोजने से मैं अवश्य मिलूँगा | वे कृष्ण , विश्न्नु , हरी , गोविन्द इन शुद्ध नामों का उचारण करते हैं तथा उच्च स्वर से गाते हैं | 
इसी प्रकार ज्ञानी महात्मा मन व पांच प्रान्नों को जीतकर ,कुंडलिनी के प्रकाश में मन और पवन की सहायता से चंद्रामृत [ १७ वीं कला ] के सरोवर को अधीन कर लेते हैं और समाधि -लक्ष्मी के सिंहासन पर नि:शेष आत्म -अनुभव रुपी राज्य -सुख का अद्वेत भाव से राज्याभिषेक होता है | इस प्रकार कोई ज्ञान -यग्य द्वारा मेरी भक्ति करते हैं | भक्त जो कुछ कहता है ,वह सब भगवान का ही कीर्तन होता है | वह जो कुछ करता है ,वह सब भगवान की सेवा होती है | उसकी सम्पूर्ण लौकिक और पारमार्थिक क्रियाएँ केवल भगवान की प्रसनता के लिए ही होती है |
|| इत्ती ||

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