सोमवार, 7 नवंबर 2011

आनंद के स्रोत


‎"आनंद के स्रोत "
भौतिक व् आत्मिक आनंद के समस्त स्रोत मानव के अंत:कर्ण में छिपे हुए हैं | सम्पतियाँ संसार में नहीं है ,बाहर तो पत्थर ,धातु , और निर्जीव पदार्थ भरे पड़े हैं|
साधारण माया -बद्ध जीवों के लिए सम्पतियों के सारे कोष आत्मा में सन्निहत हैं | जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य को तृप्ति मिल जाती है | तथा उनका उपयोग करने पर आनंद का पारावार नहीं रहता | उन आनंद भंडारों की कुंजी आध्यात्मिक साधनाओं में है और साधनों में सर्वश्रेस्ट केवल कृष्ण -भक्ति ही [ श्लोक १२ /२ ] है |
क्योंकि मन ही बंधन व् मोक्ष का कारण है ,अत: मन को ही भक्ति करनी है | जीवात्मा को शरीर ,संसार व् माया ने नहीं बाँधा है ,अपितु वह स्वयम ही बंध गया है | जैसे तोते को पकड़ने के लिए एक यंत्र -नुमा नली लगाई जाती है ,जिस पर बैठते ही वह घूमने लग जाती है | तब तोता इसे अपने पंजो से जकड लेता है व् इसके साथ ही घूमने लगता है | इस समय ,अगर उसे काटा भी जाए तो भी वह उसे [नली को ] नहीं छोड़ता | इसी कारण वह पकड़ा जाता है | यद्यपि नली के घुमते ही वह उड़ने को स्वतंत्र था ,परन्तु अपनी भूल से वह पिंजरे में कैद हो जाता है | यही भूल हम सब कर रहें हैं | हमारा "स्व " भाव आत्मा है , तथा वह परमात्मा का अंश है | आनंद ,परमात्मा ,परम धाम ,परम गति सब एक ही है तथा वही हमारा वास्तविक घर है | वहाँ जाने पर ही परम -आनंद की प्राप्ति एवं दुखों से निवृति होगी |

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