बुधवार, 16 नवंबर 2011

में कौन ?


‎" में कौन ? "
ज्ञान का अभिप्राय है जानकारी | विज्ञानं का अभिप्राय है श्रधा ,धारना ,मान्यता ,अनुभूति | आत्म -विद्या के सभी जिज्ञासू यह जानते हैं की "आत्मा " अमर है ,शरीर से भिन्न है ,इश्वर का अंश है ,सत -चित -आनंद -स्वरूप है " परन्तु इस जानकारी का एक कण भी अनुभूति भूमिका में नहीं होता | विज्ञान इस अज्ञान -अंधकार से हमें बचाता है | जिस मनोभूमि में पहुंच कर जीव यह अनुभव करता है की में शरीर नहीं वस्तुत: "आत्मा " ही हूँ ,उस मनोभूमि को " विज्ञान -मय -कोष " कहते हैं |
आत्म -ज्ञानी वह है जो विस्वाश और पूर्ण श्रधा के साथ अपने भीतर यह अनुभव करता है की " में विशुद्ध हूँ ,आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं " | शरीर मेरा वाहन है ,प्राण मेरा अस्त्र है ,मन मेरा सेवक है | में इन सबसे उपर ,इन सबसे अलग ,सबका स्वामी आत्मा हूँ | मेरा स्वार्थ इनसे अलग है ,मेरा लाभ व शरीर के लाभों में भारी अंतर है | इस अंतर को समझ कर जीव अपने हित व कल्याण के लिए कटिबद्ध होता है , आत्मोन्नति के लिए अग्रसर होता है , तो उसे अपना स्वरूप और भी स्पष्ट दिखाई देने लगता है |
आत्म -ज्ञान ,आत्म- साक्षात्कार ,आत्म -लाभ ,आत्म -प्राप्ति ,आत्म -दर्शन ,आत्म -कल्याण को जीवन लक्ष्य [ कामना नहीं ] या उद्देश्य माना गया है |
यह लक्ष्य तभी पूरा होता है ,जब हमारी अंत: चेतना अपने बारे में पूर्ण श्रधा और विस्वाश के साथ यह अनुभव करे की में वास्तव में परमात्मा का अंश ,अविनाशी आत्मा हूँ | इस भावना की पूर्णता ,परिपक्वता और सफलता का नाम ही आत्म -साक्षात्कार है | इसकी चार साधना ,सो -अहम ,आत्म-अनुभूति ,स्वर -संयम और ग्रंथि -भेद ,विज्ञान -मय कोष को प्रबुद्ध करने वाली है |
जब स्वर -संधि [ प्राण -वायु समान ] होती है ,तो सुषुम्ना का जो विधुत -प्रवाह है ,वही आत्मा की चंचल झांकी है | सुषुम्ना -ज्योति में ,रंगों की आभा होना ,उसका सीधा होना ,या वर्तुलाकार होना ,आत्मिक -सितथी का परिचायक है | यह ज्योति चंचल व विविध आकृतियों की होती है और अंत में सिथिर व मंडलाकार हो जाती है | यही विज्ञानं -मय कोष की सफलता है | उसी सितिथि में आत्म -साक्षात्कार होता है |

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