शनिवार, 19 नवंबर 2011

तुरिया --अवस्था


‎" तुरिया --अवस्था "
मन को पूर्ण तया संकल्प -रहित कर देने से रिक्त मानस की निर्विषय सिथती [ thought -less condition of mind ] होती है ,उसे तुरिया -अवस्था कहते है | जब मन में किसी प्रकार का एक भी संकल्प न रहे | ध्यान ,भाव ,विचार ,संकल्प ,इच्छा ,कामना को पूर्ण -तया मन से निकाल दिया जाय और भाव -रहित होकर अपने अंत: करण को केवल आत्मा के एक केंद्र में लीन कर दिया जाय ,तो साधक तुरिया -अवस्था में पहुंच जाता है | इसके आनन्द में साधक सुध -बुध भूल जाता है व आनंद से तृप्त हो जाता है ,इसी अवस्था को समाधि कहते हैं |
जिस किसी को जब कभी इश्वर का मूर्ति मान साक्षात्कार होता है ,तब समाधि -अवस्था में उसका संकल्प ही मूर्ति मान हूवा होता है | आरंभ स्वप्न मातर्रा की आंशिक समाधि के साथ होता है | देवी भावनाओं में जब भावावेश होता है ,तो सुस्ती ,मूर्छा आने लगती है | अपने इष्ट की हल्की सी झांकी होती है और एक ऐसे आनंद की क्षणिक अनुभूति होती है जैसी की संसार के किसी पदार्थ में नहीं मिलती |
यह सिथती आरम्भ में कम मात्रा में ही होती है पर धीरे -धीरे उसका विकास होकर परिपूर्ण तुरिया -अवस्था की और चलने लगती है और अंत में सिद्धि मिल जाती है | शब्द को ब्रह्म कहा है | सूक्ष्म शब्द को विचार व स्थूल शब्द को नाद कहते हैं | नाद की साधना से साधक उस उद्गम-ब्रह्म तक पहुंच जाता है ,जो आत्मा का अभिस्ट स्थान है | ब्रह्म -लोक की प्राप्ति दूसरे शब्दों में मुक्ति ,निर्वाण ,परम पद ,आदि नामों से से पुकारी जाती है | नाद के आधार पर मनोलय करता हूवा साधक योग की अंतिम सीढ़ी तक पहुंचता है और अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है | ओंकार की ध्वनि जब सुनाई देती है तो तुरिया -अवस्था की प्राप्ति हो जाती है | इससे उपर बढने वाली आत्मा -परमात्मा में प्रवेश कर जाती है | इसे अद्वेत -भाव की प्राप्ति भी कहा जाता है |

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