बुधवार, 2 नवंबर 2011

मृत्यु -लोक में दो निष्ठा


भगवान ने [गीता श्लोक ३/३ ]इस मृत्यु -लोक में केवल दो ही निष्ठाओं को बताया | समतायुक्त निष्काम कर्मयोग एवं ज्ञान योग |इससे लगता है की भक्ति -योग भगवान की बताई हुई निष्ठा है | स्पष्ट है की भक्ति -मार्ग स्वयंम भगवान का संदेश है | इसकी विसेषता यह है की इसमें किसी योग्यता, बल ,बुदही आदि की कोई आवश्यकता नहीं है | न ही इसमें गुरु की आवश्यकता है | क्योंकि भगवान स्वयम जगत -गुरु है |
उन्हें मन से गुरु मान लेना ही गुरु बनाना है | तथा गीता को दीक्षा -मंत्र मानकर शरणागति होना ही उनकी भक्ति करना है | भक्ति कल्प -तरु है | जो भुक्ति [सांसारिक भोग ] एवं मुक्ति [अनंत -आनंद ]दोनों की प्राप्ति करा देती है | मनुष्य मात्र भक्ति का अधिकारी है | भगवान को पूजने वाले भगवान को ही प्राप्त होते है | [गीता-श्लोक ७/२३; ९/२५ ] तथा देवों ,पितरों , भूतों को पूजने वाले उन्हें ही प्राप्त होते है |गीता में [श्लोक ९/२६-२७-२८ ] प्रमुखता से सगुन -साकार भगवान की भक्ति का वर्णनं किया है |जो कोई शुद्ध -बुद्धि ,प्रेमी - भक्त [ज्ञानी -भक्त ] भगवान को प्रेम से पत्र ,पुष्प ,फल ,जल आदि अर्पण करता है , भगवान उसे सगुन -रूप से प्रकट होकर खा लेते है | भगवान अपनी प्रशन्नता में भूल जातें है की पत्र , पुष्प खाने की चीज नहीं है | वे तो भक्त के भाव का सम्मान करके उसे खा ही लेते है | विदुरानी ने भगवान को केले के छिलके खिला दिए एवं भगवान ने भाव - विभोर होकर उनको खा लिए | भक्त अगर अपने सभी कर्म भगवान को अर्पण कर दे [वेदाध्ययन ,यग्य ,दान ,तप ] तो वह सन्यास -योग से युक्त होकर कर्म -बंधन से छूट कर भगवत -प्राप्ति कर लेता है | भक्त को बुह्दी -योग [समता] भगवान दे देते है |[गीता श्लोक १०/१०-११ ] तथा भक्त के हिरदय में ज्ञान का दीपक भी जला देते है | इसी को आत्म -साक्षात्कार [गीता श्लोक १०/११;१५/१०;१३/३४; ५/१६;९/२९] कहा गया है | इसे ही तत्व -ज्ञान भी कहते हैं | यह ज्ञान एक ही बार एवं सदा के लिए होता है | अन्य मार्गों में ब्रह्म -प्राप्ति केवल सदगुरू की कृपा से ही संभव है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें