बुधवार, 2 नवंबर 2011

ज्ञान विज्ञानं योग की व्याख्या


ज्ञान विज्ञानं योग की व्याख्या 
गीता के नॉवे अध्याय में भगवन ने अपने समग्र रूप अर्थात ज्ञान विज्ञानं योग की व्याख्या की है | इसका लोकिक उदहारण संतो द्वारा समझाया गया है, जो भगवन की समग्रता (totality) की ओर संकेत मात्र करता है जैसे तत्वरूप से जल परमाणु रूपमें ब्रहम है भाप रूप में इसे अधियग्य कह सकते हैं बादल के रूप में अधिदेव जानें वारिश रूपी क्रिया में कर्म समझें तथा अलग अलग बूंदों को अध्यात्म अर्थात जीव आत्माएं समझें | जब जल बरफ का रूप ले ले तो इसे अधिभूत समझें | इस प्रकार जल के समग्र रूप को वासुदेवः सर्वमिति {गीता श्लोक ७/१९ } अर्थात भगवन के समग्र रूप का उदहारण स्वरूप समझें इसी प्रकार संसार में सत्ता रूप से सत्चिदानन्द स्वरूप परमात्म तत्त्व ही परिपूर्ण है | मूल रूप से तीन तत्वों को ब्रम्ह, जीव, माया {प्रकृति } कहते है | गीता में परमात्मा को ब्रह्म और अधियज्ञ कहा गया है | परा प्रकृति चेतन स्वरूप आत्मा को अध्यात्म और अधिदेव कहा गया है | अपरा प्रकृति को कर्म और अधिभूत {शरीर व संसार } कहा गया है | इनमे ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म को ज्ञान विभाग व अधिभूत अधिदेव अधियज्ञ को विज्ञानं विभाग {सगुन की मुख्यता } कहा गया है | केवल ज्ञानी भक्त को ही भगवन के समग्र रूप की प्राप्ति होती है | करम योगी व ज्ञान योगी को मुक्ति व ज्ञान की प्राप्ति तो हो सकती है परन्तु भगवन के दर्शन होना {गीता श्लोक ११/५४ } आवश्यक नहीं है |

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