बुधवार, 2 नवंबर 2011

समग्र स्वरूप श्री कृष्ण


"समग्र स्वरूप श्री कृष्ण"
भगवान के तीन स्वरूप जाने जाते हैं | 
[ १ ] ब्रहम:- यह स्वरूप निर्गुण -निराकार, अक्षर, अव्यक्त आदि नामों से जाना जाता है | इसमें समस्त शक्तियां होती है ,पर उनका प्रकटी करण नहीं होता | यह केवल सत्ता -मात्र होती है तथा अपनी सत्ता बनाये रखने में सक्षम होते हैं | जीवात्मा के लिए, ये अमावश्या के चाँद की भांति ,उपयोगी नहीं होते | अमावश्या का चाँद भी पूर्ण ही होता है ,पर उसके प्रकाश का प्रकटी -करण नहीं होता | यहाँ प्रकाश का अभाव होता है |
[ २ ] परमात्मा / इश्वर :- यह स्वरूप सगुण - निराकार होता है, जिसे अधियज्ञ भी कहा जाता है | यह जीवात्मा में "आत्मा" होकर सबके हृदय में स्थित है [ श्लोक १५/११; १५/१५ ;१८/६१ १३/१७ ; १०/२० ;६/३१ ] | यही परमात्मा का अंश [ श्लोक १५/७ ] है | मानस में इसे " इश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन, अमल, सहज, सुख राशि " कहा गया है | इसे ईद [ दूज ] का चाँद कह सकते है क्योंकि इसमें अल्प प्रकाश, अल्प समय के लिए होता है | यहाँ प्रकाश का "स्व -भाव " कह सकते है | कबीर -वाणी में इसे पंछी, एवं शरीर को पिंजरा कह कर समझाया गया है | " नौ द्वारों का पिंजरा, पंछी बैठा मौन ; रहने का कोतक भया, गए अचम्भा कौन " |
[३ ] भगवान :- इसे सगुण -साकार स्वरूप कहते है | जब परमात्मा मनुष्य का शरीर धारण करके पृथ्वी पर आते हैं, तथा धर्म की रक्षा, दुष्टों का संहार ,भक्तों को दर्शन देने का काम करते है, तब इन्हें भगवान कहते हैं | वास्तव में वे भक्तों के सभी काम करते हैं [ श्लोक ९ /२२ ] | इसे पूनम का चाँद समझें | यहाँ प्रकाश का प्रभाव पूर्ण -रूपेण होता है | अर्थात इस स्वरूप में भगवान स्वयम आकर जीवात्मा का कल्याण करते हैं | इसी लिए उन्हें कृपा -निधान , भक्त -वत्सल आदि भी कहते हैं | जैसे तीनों जगह चंद्रमा तो एक ही था परन्तु प्रकाश का प्रकटी -करण अलग -अलग था | इसे तरह इन तीनों स्वरूप में भगवान श्री -कृष्ण ही प्रत्यक्ष हैं |

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