मंगलवार, 22 नवंबर 2011

देवी [ आध्यात्मिक ] संपदाएं


‎|| देवी [ आध्यात्मिक ] संपदाएं ||
भगवान ने [ गीता श्लोक १६ / १-२-३ और श्लोक १८ / ४२ -४३ -४४ ] में अनन्य भक्तों के २६ गुन्नो को देवी सम्पदा कहा है | मनुष्य शरीर में सिथत पांच कोशों को सिद्ध करने पर 
पांच आध्यात्मिक सम्पदाएं प्राप्त हो जाती है :-
[१] आत्म ज्ञान :- इसका अर्थ है ,स्वयम को जान लेना , शरीर व आत्मा की भिनता को भली प्रकार समझ लेना , शरीर व संसार के लाभों को यथा -योग्य [ गीता श्लोक ६ /१७ ] महत्व देना | आत्म -ज्ञान से संयम की प्राप्ति हो जाती है | जो कष्ट साधक को प्रारब्ध कर्मों के अनुसार भोगने होते हैं , वे भी आसानी से भुगत जाते हैं |
[२] आत्म दर्शन :- इसका मतलब है अपने निज स्वरूप का साक्षात्कार करना | साधना या गुरु -कृपा से जब आत्मा के प्रकाश का साक्षात्कार होता है ,तब भगवान में प्रेम ,प्रतीति ,श्रधा विश्वाश ,और निष्ठा की भावनाएं बढती हैं | उसे दूसरों के मन की बातें मालूम होने की शक्ति आ जाती है |
[३] आत्म -अनुभव:- अपने वास्तव स्वरूप का क्रिया -शील होना अर्थार्त भीतर -बाहर से एक होना ,करनी -कथनी में भेद नहीं होना ,विचार एवं कार्यों में अंतर नहीं होने को ही आत्म -अनुभव कहते हैं | ऐसे व्यक्ति को सूक्ष्म प्रकृति की गति विधि मालूम करने की सिद्धि मिलती है | आरंभ में अनुभव कुछ धुंधले होते हैं ,पर धीरे -धीरे दिव्य -दृष्टि निर्मल होने से सब कुछ चित्रवत दिखाई देने लगता है|
[ ४] आत्म - लाभ:- इसका अर्थ है , अपने में पूर्ण आत्म -तत्व की प्रतिष्ठा |विश्व ब्रह्मांड का ही एक छोटा सा रूप यह पिंड , देह है |इसमें जो देवी शक्तियों के गुह्य - संस्थान हैं ,वे उस साधक के लिए प्रकट एवं प्रत्यक्ष हो जाते हैं |
[५] आत्म कल्याण :- इसका अर्थ है , जीवन - मुक्ति ,सहज -समाधि ,कैवल्य ,अक्षय -आनंद ,सिथत -प्रग्याव्स्था ,परम हंस -गति ,इश्वर -प्राप्ति | ऐसी आत्माएं इश्वर की मानव -प्रति -मूर्ति होती हैं | उन्हें देव -दूत ,अवतार , पैगम्बर ,युग -निर्माता , प्रकाश -स्तम्भ आदि कहते हैं | उन्हें कोई भी चीज अप्राप्य नही रहती | उन्हें सबसे बड़ा सुख ब्रह्मानंद ,परमानंद ,आत्म -आनंद सभी मिल जाते हैं |

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