बुधवार, 2 नवंबर 2011

मन भगवान माया बलवान


"मन भगवान माया बलवान "
गीता [श्लोक १०/२२ ]में भगवान ने मन को अपनी विभूति बताया है | तथा माया [श्लोक ७/१४ ]को अपनी शक्ति बताया है | साधक को इन दोनों से पर पाना होता है |जब दोनों ही भगवान की शक्तियाँ है तो इनसे कौन जीत सकता है ? परन्तु निराश होने का कोई कारण नहीं है | स्वयं भगवान ने ही इन्हें वश में करने का रास्ता बताया है | माया उक्त श्लोकानुसार भगवान की शरणागति से तथा मन वैराग्य एवं अभ्यास [श्लोक ६/३५] से वश में हो जाता है | संतो की मान्यता है की परमात्मा -प्राप्ति के साधनों में ,प्रेम [भक्ति ,सेवा ] सबसे उपर है ,भगवान उसके नीचे है | भगवान स्वयं कहते है की में भक्तों का दास हूँ | भक्त मेरे मुकुट -मणि है | भगवान के नीचे ज्ञान तथा ज्ञान के नीचे कर्म है | सकाम -भाव से कर्म करने का फल अधिक से अधिक स्वर्ग या ब्रह्म लोक की प्राप्ति है | फल देकर कर्म समाप्त हो जाता है | पुन्य समाप्त होने पर [श्लोक ८/२१ ] पुन: मृट्यु -लोक में आना पदता है | अत:इसे वन्दनीय नहीं कहा जा सकता |
परन्तु समता -युक्त निष्काम कर्म करने से अंत:करन शुद्ध हो जाता है तथा साधक को ब्राह्मी -अवस्था प्राप्त [श्लोक २/६८-७२] हो जाती है |इससे साधक को परा - भक्ति [श्लोक १८/५४] की प्राप्ति हो जाती है तथा भक्ति से सब कुछ प्राप्त हो जाता है | परन्तु भक्त योगी को तो परम पद भगवान की कृपा से ही [श्लोक १८/५६] प्राप्त हो जाता है | ज्ञान अज्ञान को नष्ट करके स्वयं नष्ट हो जाता है |तथा ज्ञानियों में अहंकार रहने के कारण उनका पतन हो जाता है |इस मार्ग में गुरु की आवश्यकता रहती है | आत्म ज्ञान तो साधक स्वयं भी प्राप्त कर सकता है परन्तु ब्रह्म -प्राप्ति बिना गुरु के असम्भव है [श्लोक ५/१७;५/२५] | अत: सर्व सुलभ ,निष्कंटक ,निर्भय मार्ग तो केवल भक्ति का ही है | इसमें भगवान पर श्रधा एवं विस्वाश करके आँख मूंदकर हाई -वे की तरह सुख -पूर्वक चला जा सकता है | इसमें देर -सवेर भगवान की प्राप्ति अवश्य हो ही जाती है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें