रविवार, 13 नवंबर 2011

मानव शरीर का महत्व


इस मानव देह में आत्मा के पांच आवरण हैं ,वे ही कोष कहलाते हैं | इन्हीं कोशों में अनंत शक्तियां [ रिधि ,सिद्धि आदि ] छिपी हुई है , जिन्हें पाकर जीव धन्य हो जाता है | जो इनके र हस्य को जानता है ,वह निश्चय ही परम गति को प्राप्त करता है | वे निम्न हैं:-
[१ ] अन्नमय कोष:- मानव शरीर अन्न से बनता है अत: स्थूल शरीर को अन्नमय कोष कहा गया है | आसन ,उपवास ,तत्व -शुद्धि ,और तपश्या से इसकी शुद्धि होती है |
[२] प्राण -मय कोष:- अनमय कोष के भीतर प्रान-मय कोष है | पांच महाप्राण तथा पांच लघु प्राण से यह बना है | बांध, मुद्रा ,और प्राणायाम द्वारा यह कोष सिद्ध होता है |
[३] मनोमय - कोष:- चेतना का केन्द्र मन माना जाता है | इसके वश में होते ही महान अंत: शक्ति पैदा होती है | ध्यान ,त्राटक ,जप की साधना करने से मनोमय कोष अत्यंत उज्जवल हो जाता है
[४] विज्ञान -मय कोष:- शरीर व् संसार का ठीक -ठीक ,पूरा -पूरा ज्ञान होने को ही विज्ञान कहा है | सो-अहम की साधना ,आत्म -अनुभूति और ग्रंथि -भेद की सिद्धि से विज्ञान -मय कोष प्रबुद्ध होता है |
[५] आनंद -मय कोष:- आनंद आवरण की उन्नति से अत्यंत शान्ति को देने वाली तुरिया -अवस्था साधक को प्राप्त होती है | नाद ,बिंदु ,और कला की पूर्ण साधना से साधक में आनंद -मय कोष जागृत होता है | विज्ञान -मय कोष आत्मा की निकटता के कारण अत्यंत प्रकाश -मय है | इसी में अहंता ,ममता ,कर्मफल ,करता -भोक्ता ,जाग्रत ,स्वप्न ,आदि अव्स्थायं ,सुख ,दू:ख ,रहते हैं |
भगवान की अनन्य -भक्ति से संसार से विरक्ती [ श्लोक १३ /१० ] का भाव हो जाता है एवं तत्व -ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है | भक्त कभी भी अज्ञानी नहीं रहता ,उसे तो सब कुछ भगवान की कृपा से मिल जाता है |
इस संसार में केवल मनुष्य -योनी ही कर्म -योनी होती है ,शेष सभी योनियाँ भोग -योनियाँ कहलाती हैं | मनुष्य शरीर मिलना अत्यंत सौभग्य की बात है | इससे बड़ा सौभाग्य किसी सद गुरु का मिलना है | इससे भी बड़ा सौभाग्य तब है ,जब सत्गुरु आपको अपना लेता है | क्योंकि तब भगवत -प्राप्ति सुनिश्चित हो जाती है |

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