बुधवार, 2 नवंबर 2011

भगवत्प्राप्ति के मार्ग में श्रधा और विश्वास


भगवत्प्राप्ति के मार्ग में [श्रेय मार्ग ]में भगवांन में श्रधा और विश्वास का होना प्रथम आवश्यकता है . | गीता श्लोक [४/३९ ] में श्रद्धावान मनुष्यों को ही ज्ञान की प्राप्ति होना बताया हे तथा इसके साथ ही भगवत्प्राप्ति रूपी परम शांति की प्राप्ति बताई है | यहाँ ध्यान योग से ब्रहम की प्राप्ति का वर्णन है | [गीता श्लोक [६/२८] जिसमें अनंत आनंद की अनुभूति होती है | कर्मयोग में सिदही [४/३८]प्राप्त होने पर शान्त आनंद की अनुभूति होती है | तथा ज्ञानयोग में सीदही [५/१३;१४/२४]प्राप्त होने पर अखंड आनंद की प्राप्ति होती है |


उपरोक्त किसी भी साधन में श्रधा बिना कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता | तथा विवेकहीन व् श्रधारहित मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है | व् संशययुक्त मनुष्य का विनाश हो जाता है | अर्थार्त उसके साधन का परिणाम शून्य को किसी भी संख्या से गुना करने के समान होता है [अर्थार्त शून्य ही होता है ] गीताश्लोक [४/४०;७/२६;९/३;१७/२८;] में श्रधा के महत्व को बताया गया है | अत:कल्याण के कार्यों में [भक्ति ,सत्संग ,स्वाध्याय ]श्रधा से ही बुद्धि की शुद्धि होती है तथा ऐसे साधक की कभी दुर्गति नहीं होती है [गीताश्लोक ६/४० ]जबकि इसके विपरीत काम,क्रोध,व् लोभ का आश्रय [शरीर व् संसार को महत्व देना ]लेने वालों की अधोगति [गीता श्लोक १६/२१ ]होती है | एंवं आसुरी योंनी व् नरकों की प्राप्ति होती है | ऐसे ही चोरासी लाख योनियों में जन्म मिर्त्यु का क्रम जारी रहता है | संतो नै श्रधा व् विश्वास को भक्ति के माता पिता व् ज्ञान एवं वैराग्य को भक्ति के बेटे बताये है | भक्ति मार्ग में भगवान के नाम का जप व् रूप का स्मरण करना मुख्य है | भक्ति मार्ग में [गीता श्लोक [७/१९:९/१९ ]ही सर्वोच ज्ञान है | बहूतजन्मों के अंत के जन्म मे तत्वज्ञान को प्राप्त पुरुष सब कुछ वासुदेव ही है - इस प्रकार मुझको भजता है,वह महात्मा अत्यंत दुर्लभ है | गीता-श्लोक [९/१८ :११/३७ ]में भी सिद्ध भक्त के लक्षण बताए गये है |

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