शनिवार, 5 मई 2012

सर्वोत्तम एवं सुगम साधन ' भक्तियोग ' का वर्णन

|| सर्वोत्तम एवं सुगम साधन ' भक्तियोग ' का वर्णन ||
जो मनुष्य मन , इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करके कर्मयोग , ज्ञानयोग या ध्यानयोग का साधन करने में अपने को समर्थ नहीं समझता हो , ऐसे साधक के लिए सुगमता से परमपद की प्राप्ति करानेवाले भक्तियोग का संक्षेप में वर्णन करते हुए भगवान गीता [ ५ / २९ ] में कहते हैं " मेरा भक्त मुझको सब यज्ञ और तपों का भोगनेवाला , सम्पूर्ण लोकों के ईश्वरों का भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण भूत - प्राणियों का सुहृद अर्थात स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी , ऐसा तत्व से जानकर शान्ति को प्राप्त होता है |"
अहिंसा , सत्य आदि धर्मों का पालन , देवता , ब्राह्मण , माता - पिता आदि गुरुजनों का सेवन - पूजन , दीन - दू:खी , गरीब और पीड़ित जीवों की स्नेह और आदरयुक्त सेवा और उनके दू:खनाश के लिए किये जानेवाले उपयुक्त साधन एवं यज्ञ , दान आदि जितने भी शुभकर्म हैं , सभी का समावेश ' यज्ञ ' और ' तप ' शब्दों में समझना चाहिए | भगवान सबके आत्मा हैं [ १० / २० ] ; अतएव देवता , ब्राह्मण , दीन - दू:खी आदि के रूप में स्थित होकर भगवान ही समस्त सेवा - पूजा आदि ग्रहण कर रहे हैं | इसलिए वे ही समस्त यज्ञ और तपों के भोक्ता हैं [ ९ / २४ ] | जो पुरुष भगवान के तत्व और प्रभाव को जानता है , वह सबके अंदर आत्मरूपसे विराजित भगवान को ही देखता है |
इंद्र , वरुण , कुबेर , यमराज आदि जितने भी लोकपाल हैं तथा विभिन्न ब्रह्मांडों में अपने - अपने ब्रह्मांड का नियंत्रण करनेवाले जितने भी ईश्वर हैं , भगवान उन सभी के स्वामी और महान ईश्वर हैं | इसीसे श्रुति में कहा है ' उन ईश्वरों के भी परम महेश्वर को ' अपनी अनिर्वचनीय मायाशक्ति द्वारा भगवान अपनी लीला से ही सम्पूर्ण अनंतकोटि ब्रह्मांडों की उत्पत्ति , स्थिति और संहार करते हुए सबको यथायोग्य नियंत्रण में रखते हैं और ऐसा करते हुए भी वे सबसे ऊपर ही रहते हैं | इस प्रकार भगवान को सर्वशक्तिमान , सर्वनियंता , सर्वाध्यक्ष और सर्वेश्वरेश्वर समझना ही उन्हें ' सर्वलोक - महेश्वर ' समझना है |
भगवान तो सदा - सर्वदा सभी प्रकार से पूर्णकाम हैं [ ३ / २२ ] ; तथापि दयामय स्वरूप होने के कारण वे स्वाभाविक ही सब पर अनुग्रह करके सबके हित की व्यवस्था करते हैं और बार - बार अवतीर्ण होकर नाना प्रकार के ऐसे विचित्र चरित्र करते हैं , जिन्हें गा - गाकर ही लोग तर जाते हैं | उनकी प्रत्येक क्रिया में जगत का हित भरा रहता है | भगवान जिनको मारते या दंड देते हैं उन पर भी दया ही करते हैं , उनका कोई भी विधान दया और प्रेम से रहित नहीं होता | इसीलिए भगवान सब भूतों के सुहृद हैं | जो पुरुष इस बात को जान लेता है और विश्वास कर लेता है की ' भगवान मेरे अहेतुक प्रेमी हैं , वे जो कुछ भी करते हैं , मेरे मंगल के लिए ही करते हैं |' वह प्रत्येक अवस्था में जो कुछ भी होता है , उसको दयामय परमेश्वर का प्रेम और दया से ओत - प्रोत मंगलविधान समझकर सदा ही प्रसन्न रहता है | इसलिए उसे अटल शान्ति मिल जाती है | इस प्रकार जो भगवान को यज्ञ - तपों का भोक्ता , समस्त लोकों के महेश्वर और समस्त प्राणियों के सुहृद - इन तीनों लक्षणों से युक्त जानता है , वही शान्ति को प्राप्त होता है |
श्रधा और प्रेम के साथ महापुरुषों का संग , सत - शास्त्रों का श्रवण - मनन और भगवान की शरण होकर अत्यंत उत्सुकता के साथ उनसे प्रार्थना करनेपर उनकी दया से मनुष्य भगवान के स्वरूप , प्रभाव , तत्व और गुणों को समझकर उनका अनन्य भक्त हो सकता है |
भगवान के उपरोक्त तीन लक्षणों में से किसी एक लक्षण से युक्त समझनेवाले को भी शान्ति मिल जाती है क्योंकि जो किसी एक लक्षण को भी भली - भाँती समझ लेता है , वह अनन्यभाव से भजन किये बिना रह ही नहीं सकता | भजन के प्रभाव से उस पर भगवत - कृपा बरसने लगती है और भगवत्कृपा से वह अत्यंत ही शीघ्र भगवान के स्वरूप , प्रभाव , तत्व तथा गुणों को समझकर पूर्ण शान्ति को प्राप्त हो जाता है |
|| इत्ती ||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें