शनिवार, 5 मई 2012

साधनचतुष्टय - सम्पन्न ही ज्ञानयोग के अधिकारी

|| साधनचतुष्टय - सम्पन्न ही ज्ञानयोग के अधिकारी ||
भगवान गीता [ श्लोक १३ / २४ ] में आत्मसाक्षात्कार का वर्णन करते हुए कहते हैं " उस परमात्मा को कितने ही मनुष्य तो शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान के द्वारा हृदय में देखते हैं ; अन्य कितने ही ज्ञानयोग के द्वारा और दूसरे कितने ही कर्मयोग के द्वारा देखते हैं अर्थात प्राप्त करते हैं |" यहाँ [ ६ / ११ - १३ श्लोक में बतलाई हुई विधि के अनुसार ] ध्यानयोग से बुद्धि की शुद्धि करने की बात कही गई है | उस विशुद्ध सूक्ष्म और तीक्ष्ण बुद्धि से जो हृदय में परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किया जाता है , वही ध्यान द्वारा आत्मा से आत्मा में आत्मा को देखना है | ज्ञानयोग को भगवान ने देहधारियों के लिए कठिन बताया है | तुलसीदासजी ने कहा है " कहत कठिन , समझत कठिन , साधन कठिन विवेक " अर्थात ज्ञानमार्ग अन्य मार्गों से बहुत कठिन है | इसके द्वारा जो आत्मा और परमात्मा के अभेद का प्रत्यक्ष होकर ब्रह्म का अभिन्नभाव से प्राप्त हो जाना है , वही ज्ञानयोग के द्वारा आत्मा को आत्मा में देखना है | परन्तु ज्ञानयोग का यह साधन साधनचतुष्टय -सम्पन्न अधिकारी के द्वारा ही सुगमता से किया जा सकता है | इसमें विवेक , वैराग्य ,शटसंपत्ति और मुमुक्षुत्व - ये चार साधन होते हैं: - [१ ] विवेक - विवेक का अर्थ है तत्व का यथार्थ अनुभव करना | सब अवस्थाओं में और प्रत्येक वस्तु में प्रतिक्षण आत्मा और अनात्मा का विश्लेषण करते - करते यह विवेक - सिद्धि प्राप्त होती है | ' विवेक ' का यथार्थ उदय हो जाने पर सत और असत एवं नित्य और अनित्य वस्तु का क्षीर - नीर - विवेक की भाँती प्रत्यक्ष अनुभव होने लगता है |
[ २ ] वैराग्य - विवेक द्वारा सत - असत और नित्य - अनित्य का प्रिथकीकरण हो जाने पर असत और अनित्य से सहज ही राग हट जाता है , इसी का नाम ' वैराग्य ' है | मनमें भोगों की अभिलाषाएँ बनी हुई हैं और ऊपर से संसार से द्वेष और घृणा कर रहे हैं , इसका नाम ' वैराग्य ' नहीं है | वैराग्य यथार्थ में आभ्यंतरिक अनासक्ति का नाम है | जिनको सच्चा वैराग्य प्राप्त होता है , उन पुरुषों के चित्त में ब्रह्मलोक तक के समस्त भोगों में तृष्णा और आसक्ति का अत्यंत अभाव हो जाता है | जब तक ऐसा वैराग्य न हो , तब तक समझना चाहिए की विवेक में त्रुटि रह गई है | विवेक की पूर्णता होने पर वैराग्य अवश्यम्भावी है |
[ ३ ] शट - सम्पत्ति - इन विवेक और वैराग्य के फलस्वरूप साधक को छ: विभागोंवाली एक परमसम्पत्ति मिलती है - [ १ ] शम - मनका पूर्णरूप से निगृहीत , निश्चल और शांत हो जाना ही ' शम ' है | विवेक और वैराग्य की प्राप्ति होने पर मन स्वाभाविक ही निश्चल और शांत हो जाता है | [ २ ] दम - इन्द्रियों का पूर्णरूप से निगृहीत और विषयों के रसास्वाद से रहित हो जाना ' दम ' है | [३ ] उपरति - विषयों से चित्त का उपरत हो जाना ही उपरति है | जब मन इन्द्रियों को विषयों में रसानुभूति नहीं होगी , तब स्वाभाविक ही साधक की उनसे उपरति हो जायेगी | यह उपरति भोगमात्र से - केवल बाहर से ही नहीं , भीतर से - होनी चाहिए | [ ४ ] तितिक्षा - द्वन्द्वों को सहन करने का नाम तितिक्षा है | यद्यपि सर्दी - गर्मी , सुख - दू:ख , मान - अपमान आदि का सहन करना भी ' तितिक्षा ' है ; परन्तु विवेक , वैराग्य और शम , दम , उपरति के बाद प्राप्त होने वाली तितिक्षा तो इससे कुछ विलक्षण ही होनी चाहिए | द्वन्द्व- जगत से ऊपर उठकर , साक्षी होकर द्वन्द्वों को देखना , यही वास्तविक तितिक्षा है | [ ५ ] श्रधा - आत्मसत्ता में प्रत्यक्ष की भांति अखंड विश्वास का नाम ही श्रधा है | पहले शास्त्र , गुरु और साधन आदि में श्रधा होती है ; उससे आत्मश्रधा बढती है | परन्तु जब तक आत्मस्वरूप में पूर्णश्रधा नहीं होती , तब तक एकमात्र निष्कल , निरंजन , निराकार , निर्गुण ब्रह्म को लक्ष्य बनाकर उसमें बुद्धि की स्थिति नहीं हो सकती | [ ६ ] समाधान - मन और बुद्धि का परमात्मा में पूर्णतया समाहित हो जाना - जैसे अर्जुन को गुरु द्रोण के सामने परीक्षा देते समय वृक्ष पर रखे हुए नकली पक्षी की केवल आँख ही दिखाई पडती थी , वैसे ही मन और बुद्धि को निरंतर एकमात्र लक्ष्यवस्तु ब्रह्म के ही दर्शन होते रहना - यही समाधान है |
[ ४ ] मुमुक्षुत्व - उपरोक्त सभी योग्यताएँ प्राप्त होने पर साधक अविद्या के बंधन से सर्वथा मुक्त होना चाहता है और वह सब ओर से चित्त हटाकर , किसी ओर भी न देखकर , एकमात्र परमात्मा की ओर ही दौड़ता है | उसका यह तीव्र साधन ही , परमात्मा - प्राप्ति की लालसा का परिचय देता है | यही मुमुक्षुत्व है |
ज्ञानयोग का वर्णन गीता [ २ / ११ - ३० ] में विस्तारपूर्वक किया गया है | उपरोक्त कठिनता को देखते हुए ही भगवान ने देहधारियों के लिए निष्काम - कर्मयोग का सुगम साधन बताया है | तथा शरणागति [ अनन्यभक्ति ] को सर्वोत्तम साधन बताया है |
|| इत्ती ||

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